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डस्टर / ज्ञानेन्द्रपति
Kavita Kosh से
आकाश के सुनील बोर्ड पर
हवाओं की लिखत को पोंछता
डस्टर फिरता है एक पतंग का
--मास्टर जी रविवार की छत पर खड़े हैं, बांधे बाँह
पश्चिम क्षितिज के सम्मुख
वे कुछ राशियाँ थीं रह-रह जोड़ी जातीं--हवाओं की लिखत
रिटायरमेंट के क़रीब मास्टर जी जिन्हें मन ही मन गुनते रहते हैं अक्सर