भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डांड्यों कौंला डेरू / ओम बधानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोड़ ईं दुन्यां यूं माया क जिदेरू
हिट छान्यौं कौंला डेरू
यख नी क्वी तेरू मेरू
हिट छान्यौं कौंला डेरू।

ओडु घसारि कैकु, न बिज्वाड़ कुद्याई
आवो बतावो क्वी,कैकु क्य खाइ चुर्याई
कैकि बाखरि खाई न भेरू।

घणि कुळायूं क गैल,बांज देवदारू कि छैल
पौन पंछ्यों क दगड़ा,हिट न कर जिकुड़ि कैल
छोड़ गौं गळौं कु फेरू।

गीत माया क मिसौंला,डांडि कांठ्यौं गुंजौंला
फूल प्रीत क खिलैक,बिट्टा पाखौं रंगौंला
होलु माया कु बसेरू।

पर्वाणु कि दुन्यां य, यख मन कु क्य काम
बरखा घनाघोर,पैनु छ भारि घाम
यख छ बैर्यौ कु घेरू।