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डाक बंगला / पूनम सूद
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दीवार के कोनों में
लटके हैं बीती उम्र के
लम्बे घने जाले
गर्द की परत बन
पसरा है वक्त
सफेद चादर पर
जिसके नीचे सहेजी हुई
हैं बेशकीमती यादें
ख़ाली सुनसान अंधेरों में
हलचल मचा देते हैं कभी
विचारों के चिमगादड़
कई जवां अधूरी ख्वाहिशें
कभी चुडैल बन लेती हैं अंगड़ाई
खूंखार चीख के साथ
झपट पड़ती है मुझ पर काली बिल्ली
देती है मेरी अधचेतना की
लालटेन गिरा
खोलता हूँ जब मैं
चिरमिराता भारी किवाड़
लेने को उजड़े, खण्डर, वीरान दिल का हाल
बुजुर्ग दिल,
किसी पुराने डाक बंगले की तरह हो जाता है,
जहाँ भटकी हई याद को
है इज़ाजत रात ठहरने की
परन्तु यदि कोई,
जीवित ख्याल
गुज़रता भी है, इस रस्ते से तो,
पाया जाता है मृत,
अगली सुबह
संदिग्ध अवस्था में