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डार्क फिल्मों के चरित्रों की तरह हो जाएंगे / अभिषेक कुमार सिंह
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डार्क फ़िल्मों के चरित्रों की तरह हो जाएँगे
लड़ते-लड़ते लोग गुंडों की तरह हो जाएँगे
नफरतों की भट्ठियों में तपते-तपते एक दिन
काम के लोहे तमंचों की तरह हो जाएँगे
कैद हैं जो ख़ुद के गूंगेपन के महलों में कहीं
अपनी चुप्पी सुनके बहरों की तरह हो जाएँगे
हर बहस के साथ हैं उड़ने की जो चाहत लिये
आँधियों के बीच तिनकों की तरह हो जाएँगे
धन की अंधी दौड़ में शामिल तो हो जाएँगे पर
हम मनुष्यों से मशीनों की तरह हो जाएँगे
एक बच्चे की नज़र से ज़िन्दगी को देखना
असलहे सारे खिलौनों की तरह हो जाएँगे
इनमें बस आकाश छूने की ललक पैदा करो
ख्वाब आंखों के परिंदों की तरह हो जाएँगे