भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डालकर दाना शिकारी फाँसते हैं आपको / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
डालकर दाना शिकारी फाँसते हैं आपको ।
वोट के बदले में बोतल बाँटते हैं आपको ।
मिल गया मुर्गा तो ख़ुश हो काट डाला आपने,
पाँच सालों तक वही फिर काटते हैं आपको ।
आपके हक़ को बना रक्खा उन्होंने चाट-सा,
रोज़ ही लेकर मज़ा सब चाटते हैं आपको ।
आपकी ही ग़लतियाँ साधन बनी उनके लिए,
खोदते हैं रोज़ क़ब्रें गाड़ते हैं आपको ।
एक छोटी भूल देखो बन गई कैसी सज़ा,
दोष उनका है सुगम पर डाँटते हैं आपको ।