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डाले नहीं हाशिए / शील
Kavita Kosh से
बीते दिन ...
रीते नहीं, काम आए ।
समय के झकोरों में –
खुले-खिले –
सुबह-शाम आए ।
बीते दिन ...
रीते नहीं,– काम आए ।
आँखों में रसे-बसे,
कानों में गुँजरित,
हृदय में समाए –
क़ागज में उतरे ।
बीते दिन ...
रीते नहीं – काम आए ।
जीवन जो जिया –
लिया-दिया, पूरा किया ।
कविता की सीमा में –
डाले नहीं हाशिए।
प्रीति मिली प्राणों को,
जन की प्रतीति मिली,
आतुर मुस्कानों में
जीवन को जीत मिली ।
बीते दिन ...
रीते नहीं – काम आए ।
22 फ़रवरी 1990