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डुबाना है अगर तो फिर समन्दर हो नहीं जाते / सूरज राय 'सूरज'

डुबाना है अगर तो फिर समन्दर हो नहीं जाते।
ये आँसू काग़ज़े-दिल पर क्यूँ अक्षर हो नहीं जाते॥

तिलक दस्तार आशीर्वाद भी महकें जिसे छूकर
महज कांधे पर ही होने से तो सर हो नहीं जाते॥

तुम्हारी ज़िद है गर ये कि हमें पूजो ख़ुदा जैसे
तो हैं तैयार हम जब तक कि पत्थर हो नहीं जाते॥

हथेली पर किसी की नाम लिख देना कभी अपना
पता है ये मुझे यूँ तो मुक़द्दर हो नहीं जाते॥

सज़ाए-मौत हो जिसमें मुझे तस्कीन देने पर
तुम्ही क्यों उस रियासत के कवँगर हो नहीं जाते॥

मुक़र्रर हो मेरी तनख़्वाह बस तुम, काम कुछ भी हो
ये लम्हें क्यों मेरे सपनों का दफ़्तर हो नहीं जाते॥

ज़माने भर के अमृत के लिये पी ले जो विष वह है
निम्बोली के चबाने से ही शंकर हो नहीं जाते॥

तुझे उस वक़्त तक जलना पड़ेगा जब तलक "सूरज"
हैं जितने घर वह दिल औ दिल हैं जो घर हो नहीं जाते॥