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डूब रहे हैं / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
धँसते जा रहे हैं हम
पहाड़ों से उतरकर
दलदल में
किसे आवाज़ दें रात के इस पहर में
दूर-दूर तक पानी पर
झूल रहा है
आधे कोस का चांद
सन्नाटे में डूब रहे हैं हम