भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढब बादळ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जा रै डोफा बादळ
कदै ई इयां ई
बरस्या करै
बरसा-बरसा पाणीं
थूं तो ले लियो
मिनख रो पाणीं
फिरै बापड़ो
अब गाणीं माणीं!

टपकती-टपकती
छेकड़ टपक ई गई
भींता बिचाळै छात
भींता लुळी उठावण नै
पण पसरगी आंगणैं में
सूंएं बिचाळै छात!

ढब!
अब ढब बादळ
भींत चिणावां
उठावां छात
बणावां बात
थारै तांईं
आगै सारु!