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ढब बादळ / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
जा रै डोफा बादळ
कदै ई इयां ई
बरस्या करै
बरसा-बरसा पाणीं
थूं तो ले लियो
मिनख रो पाणीं
फिरै बापड़ो
अब गाणीं माणीं!
टपकती-टपकती
छेकड़ टपक ई गई
भींता बिचाळै छात
भींता लुळी उठावण नै
पण पसरगी आंगणैं में
सूंएं बिचाळै छात!
ढब!
अब ढब बादळ
भींत चिणावां
उठावां छात
बणावां बात
थारै तांईं
आगै सारु!