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ढाल / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
मारो मुझे मारो
कि मैं मार खाकर। पीठ
सेकूंगा/धूप में
कंधों तक। टूट कर भी
रहूंगा ज़िन्दा
मारो मुझे मारो
कि मार से अभी तो दूर तक गुज़र/सकता हूं निर्लिप्त
बीड़ी खुली हवा में पीता हुआ...
भीतर का उद्बुद्ध सुख
एक चिथड़ा। लहूलुहान संकल्प एक
वह तो अब भी है मेरा प्राप्य संवेदन
बौने अवसरवाद की सेना
के हाथों से दूर/अभी जिन्दा!
मारो मुझे मारो
मैं भीतर देखता रहूंगा शान्त
व्याप्त/सर्व जनाशय उच्छल कामना की मंगला
कि जो मेरी और मुझसे सबकी है
और जो है बचाने वाली ढाल
सर्वहारा धूप के धुले पंखों में छुपी
चिड़िया की दृष्टिमयी तरलता की-सी
और मैं रहूंगा उसका अमृत-पुत्र
जिन्दा
क्योंकि मारने वाले से बचाने वाले का हक
समय ने बड़ा सिद्ध किया है