भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तकनीक / संजय पुरोहित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बै रच रैया है षडयन्तर
तकनीक रै भैळै
तकनीक बाळणजोगी
सैं कीं गिटगी
हौळै हौळै
म्हारौ बालपणौ
म्हारा सुरेख लागणा रंग
सावण रा गीतळला
पिणघट री चैं‘चाट
पैलदूज रमती चिड़कल्यां
सतोळियो जमावंता छोरा
राजा राणी अर
जुलमी राखस री कहाणियां
कैवतां आडियां अर पहैल्यां
कोसां री जातरा कर
सनैसो ल्यावंता कागद
मिसरी घोळती बांसरी
मनवार रा पीळा चावळ
डमडम डमरू
घूमर घालतो लट्टू
गिल्ली डण्डा
सींझ्या रौ हरजस
सैं की छुट रैया है लारै
बडै छोटै रो काण कायदौ
झर रैयो है
निजरां सूं गायब
हुय रैयी है लाज
अबै
टीवी, मोबाईल अर कम्पूटर
री लपलपावंती जीभां
जाय रैयी है बढ़ती
म्हैं जाणुं हूं
कै अबै
मिनख लुगाई अर टाबर
हुयग्या है परबस
इण तकनीक रा
तकनीक रो ओ
अंधारै रो मारग
उण ठौड़ लै जावैलो
जठै सूं पाछौ आवणौ
नी हुवैलौ सोरो
कदैही