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तकलीफ़ / लाल्टू
Kavita Kosh से
मैं
ऐसे किसी भी ख़ुदा को मानने को
तैयार हूँ
जो
एक रोते बच्चे को हँसा दे
वे
कैसे लोग होते हैं
जिन्हें
बच्चों की किलकारियाँ शोर
लगती हैं
ए० सी० की मशीनी धड़धड़ में सोते हैं
खर्राटे मारते
और
बच्चे के उल्लास से परेशान
होते हैं
दुनिया के हर बच्चे से कहता
हूँ कि हमारी मत मानो
आ
आ कर दाढ़ी खींचो हमारी
और
अपनी राहों पर चल पड़ो ।
कुत्तों के पिल्लों और सूअर
के बच्चों से भी
तकरीबन
यही कहना है
तकलीफ़ यह कि मुझे उनकी भाषा
नहीं आती ।