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तट-प्रशस्ति / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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प्रकृति बिना पुरुष न कृती, आकृति बिनु नहि नाम
कला-हीन की काव्यकृति, रस बिनु ललित ललाम
विनु सुरभिक चन्दन जेना, विनु किरणे जनु इन्दु
ललना बिनु जीवन, जेना लहरि - बिन्दु बिनु सिन्धु
आकृति-प्रकृतिक मेलसँ विकृति न कृति कहबैछ
रूप-रसक शुचि शैलसँ, संस्कृति लहरि बहैछ