तड़प उठा था दर्द / तुषार धवल
तड़प उठा था दर्द
जब तुम्हारी नन्ही जान बेबस
बेतहाशा रो रही थी ।
कुछ कह रहे थे तुम अपनी भाषा में
जिसे मैं समझ न सका ।
तुम्हारी वह सहज बेशब्द भाषा
मेरे बीज तक की परतों को उधेड़ती रही
एक तड़प तुमसे उठ कर
बिना किसी व्याख्या के
मुझमें उतर कर
मेरे भीतर तड़प गई
कितने असहाय थे तुम उस वक़्त
कह नहीं सकते थे दर्द मुझ से मेरी भाषा में
जिसे सीखने में
मैं भूल चुका हूँ सृष्टि की नाभि से उगी
जीवन की उस मूल भाषा को
जिसे तुम अभी जानते हो
तुम्हें भी सभ्यता के व्याकरण में ढाला जाएगा
और तब तुम भी
अपनी यह बेशब्द भाषा भूल जाओगे
कि इस दुनिया की भाषा
जीवन की उस मूल भाषा के नाश पर ही
उग सकती है
इसे सीखने के लिये उसे भूलना ही पड़ेगा तुम्हें ।
कैसा असर छोड़ता है तुम्हारी भाषा का
एक नन्हा अर्धविराम भी !
मैं कवि होने का दम्भ लिए
कितना लघु हूँ तुम्हारी इस क्षमता के आगे
तुम नहीं समझोगे मेरी भाषा
कि तुम सृष्टि के स्पन्दन में धड़कते हो
इसे भूलोगे जैसे जैसे
तुम मेरी भाषा सीखते जाओगे
इस दुनिया में जीने के लिए
बहुत सी अच्छी चीज़ें
तुम्हें भूलनी पड़ेगी
मेरे बेटे ।