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तत्व / शिवदेव शर्मा 'पथिक'
Kavita Kosh से
आम के टिकोलों की तरह
आशायें
चटनी की तरह
विवशताओं के दिन
सेनुरिया रंगों में रंगी
पगी
बम्बइया उमंगें
पीली-पीली
पकी-पकी
भरी-भरी फलियाँ
अमौट-सी बनी आस्था
सरस-संग्रह!
आँधी आने दो
टिकोले सामना करेंगे
जिनकी टहनियाँ कमजोर होंगी
टूटेंगी
जो प्रबल होंगी-जीयेंगी
आशाएँ कोमल पत्र नहीं होतीं
विश्वास बूढ़ा नहीं होता
आस्था जवान रहती है।