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तथागत कामनाएँ / राहुल शिवाय
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क्यों तुम्हें दो दृग जहाँ में
ढूँढते रहते हमेशा
जब हृदय से धमनियों तक
तुम निरंतर बह रहे हो
हैं जहाँ पर शब्द मेरे
तुम वहां पर बोध बनकर
इस हृदय की कामना में
सत्य पथ का शोध बनकर
तुम बने उल्लास मेरा
और विरहन बन दहे हो
तुम वही हो पा जिसे मैं
वन-पलाशों में खिला हूँ
तुम वही जिस सँग झरा हूँ
और मिट्टी में मिला हूँ
तुम वही जो बाँचता हूँ
और तुम ही अनकहे हो
आँसुओं से गढ़ रहे हृद में
अजन्ता की गुफाएँ
तुम समय के शांति पथ में
हो तथागत कामनाएँ
एक पावन सी पवन बन
साथ तुम मेरे बहे हो