भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तब और अब / जितेन्द्र 'जौहर'
Kavita Kosh से
हरी, हरजिन्दर,
हैरी और हबीब
रहते थे इक-दूजे के
बेहद क़रीब!
बड़ी जमती थी उनकी
गंगा-जमुनी टोली,
एक-साथ मनाते थे
ईद-बैसाखी-क्रिसमस-होली!
मगर आज
उनके अंन्दाज़
बिल्कुल बदल गये हैं ;
वे जाति और मज़हब के
सँकरे साँचों में ढल गये हैं!
अब नहीं दिखती भावनाओं में
पहले जैसी गरमाहट,
दिलों में घुल गयी
एक अनचाही कड़ुवाहट...
और प्रेम की मिठास हो गयी है ख़तम!
इसीलिए लोग गाने लगे हैं-
"मोहब्बत है मिर्ची... सनम!!"