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तमाम फ़िक्र ज़माने की टाल देता है / इन्दिरा वर्मा

तमाम फ़िक्र ज़माने की टाल देता है
 ये कैसा कैफ़ तुम्हारा ख़याल देता है

 हमारे बंद किवाड़ों पे दस्तकें दे कर
 शब-ए-फ़िराक़ में वहम-ए-विसाल देता है

 उदास आँखों से दरिया का तज़्करा कर के
 ज़माना हम को हमारी मिसाल देता है

 ये कैसा रात में तारों का सिलसिला निकला
 जो गर्दिशों में मुक़द्दर भी ढाल देता है

 बिछड़ के तुम से यक़ीं हो चला है ये मुझ को
 के इश्क़ लुत्फ़-ए-सज़ा बे-मिसाल देता है