भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तरक्की / विशाखा विधु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लगता है खूब तरक्की पर हैं जनाब...
नई गाड़ी,नया घर
कई-कई नौकर -चाकर !!
मैडम जी भी
नई सी हो गयी हैं
ब्यूटी-पार्लर जाकर
पुराने सामान फेंक रही हैं
नये-नये मंगवाकर !
बस पुराने तो
बाबु जी और अम्मा बचे हैं
क्या रख पायेगा संगवाकर !