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तलवार की बातें करो छोडो मयान की / अभिनव अरुण
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अब क्या बताएं आपको दुनिया जहान की,
ये शायरी ज़ुबां है किसी बेज़ुबान की।
शहरों की चकाचौंध में अब लेगा खबर कौन,
उस गाँव के रोते हुए बूढ़े मकान की।
बेहद घुटन भरा है तरक्की तेरा लिबास,
पहचान तलक मिट गयी दीन-ओ-ईमान की।
ज्वालामुखी की राख में चिंगारियां भी हैं,
हिम्मत है तो छू ले हवा आंधी तूफ़ान की।
जागी हुई कौमों से सुलह व्यर्थ की कोशिश,
तलवार की बातें करो छोड़ो मयान की।
ओहदा था जितना ऊँचा फ़िक्र उतनी तंग थी,
होती है चीज़ फीकी ही ऊँची दुकान की।