भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तलास ! / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हानै सबदां री तलास है
सबद ........
जिण सूं बण सकै ऐक पूरौ वाक्य!
म्हूं कई दिनां सूं सोधूं हूं
ऐक रंग री ओळखाण हाळा सबद!
बियां तो म्हूं इण नै
रगत, खून या लोई भी कैय सकूं!
पण म्हानै लागै
आं सबदां सूं
नीं आवै म्हारै बिचारां मांय उबाळ ...!
म्हानै लागै इण मारक रंग री खातिर
सोधणो चाइजै कोई नूवों सबद
इण नै दांव देवण तांई।
कै पीळा पड़ ज्यावै बां रा चै‘रा
लाल हुवण रै डर सूं
म्हूं भी हो ज्याऊं निरास
अर बारै भाजण पडूं घर सूं!
पण बारै आंवता‘ई
जणा म्हूं सड़क पर देखू
लाल रंग मांय रंग्योड़ी कोई लास
तो म्हानै फैरूं लागै
कै म्हानै इण रंग खातर
सोधणौ चाइजै कोई नूवों सबद!