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तस्कीन दे सकेंगे न जाम ओ सुबू मुझे / महेश चंद्र 'नक्श'
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तस्कीन दे सकेंगे न जाम ओ सुबू मुझे
बै-चैन कर रही है तेरी आरज़ू मुझे
मुझ से तलाश-ए-राह की दुश्वारियाँ न पूछ
भटका रहा है ज़ौक-ए-सफ़र चार-सू मुझे
बज़्म-ए-असर-फ़रेब की तब्दीलियाँ तो देख
मग़मूम आ रहे हैं नजऋर ख़ूब-रू मुझे
तेरी नज़र न जान सकी मेरे दिल का हल
क्या मुतमइन करेगी तेरी गुफ़्तुगू मुझे
ऐ ‘नक्श’ इज़्तेराब-ए-दिल-ओ-जाँ को क्या करूँ
बर्बाद कर रहा है ग़म-ए-आरज़ू मुझे