भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तस्कीन न हो जिस से / इक़बाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तस्कीन<ref>तसल्ली</ref> न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आगाज़<ref>शुरुआत</ref> बदल डालो

पुर-सोज़<ref>दु:खी</ref> दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वो ही खेलो, अंदाज़ बदल डालो

ऐ दोस्त! करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
गर चाहते हो मंजिल तो परवाज़<ref>उड़ान</ref> बदल डालो

शब्दार्थ
<references/>