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तस्वीर बन गई / आरती मिश्रा
Kavita Kosh से
मैंने कुछ कहना चाहा
बरबस तुम्हारा नाम आया
मैं सुनना चाहती थी कोई गीत
बोल तुम्हारे कानों में खनखनाने लगे
रात दो बजे मैं जाग रही हूँ
कविता लिखने की कोशिश करती
मेरी क़लम चलती रही
तुम्हारी तस्वीर बन गई