ताँका / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
1.
जन्म-मरण
यहेॅ तेॅ निश्चित छै
नै करोॅ चिन्ता
कर्म आपनों साथ
भाग्य आपनोॅ हाथ।
2.
मोॅ न मलिन
की जप, तप, व्रत?
आत्म छलिया
साधु भेष धारी केॅ
परधन हरी केॅ।
3.
मानुष तन
छै विवेक सम्पन्न
साधन-धाम
परलोक संभार
नै बनियोॅ गंवार।
4.
है बरगद
है पराश-पीपर
देवोॅ के घोॅर
काटै छै पेड़ोॅ केॅ
आपनोॅ दोस्तोॅ केॅ।
5.
क्रोध चांडाल
कामना, अहंकार
फेंकोॅ उखाड़
आत्मोद्घाटन करोॅ
गुरु चरण धरोॅ।
6.
उतरोॅ प्रभु
फेनु यहि देशोॅ में
राम भेषोॅ में
कृष्ण के रूप लेने
शिशिर-धूप लेने।
7.
रे अभिमानी
अहंकार, अकड़
कभी नै कर
रावण अहंकारी
लंका जराय डारी।
8.
सारहीन छै
जगत व्यवहार
तीखोॅ छै धार
आत्मज्ञान जानोॅ।
9.
पतन-पथ
सुखोॅ के आकर्षण
भौतिक लोभ
दिव्य चेतन आत्मा
छै अंश परमा।
10.
बबूर बन
अंगूर-सेब केना
अज्ञानी जेना
जे रोपभेॅ से काटभेॅ
करम फल पैभेॅ।
11.
ईश भीतरें
लोगें ढूढ़ै बाहरें
मिलै तेॅ कैसें?
जबेॅ भीतर जैभेॅ
तबेॅ ईश पैभेॅ।
12.
जाड़ा में धूप
तेॅ सब्भै केॅ पियारोॅ
जैसनोॅ आग
धूप आरो आगिन
जाड़ा में सुहागिन।