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ताना बाना / पंकज सुबीर
Kavita Kosh से
अलसाई हुई भोर की
ये मादल गंध
जो छटपटा रही है
तुम्हारे बालों में
उसे बीज दो
मेरे अंदर
ठीक वहाँ
जहाँ
बुन रही है
गुनगुनी
गीली मिट्टी
किसी अप्रत्याशित
स्वप्न का
ताना बाना