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तापसी प्रवज्या / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति

तप किया नहीं जाता,

आत्म लीं होने पर स्वतः हो जाता है.

बलात देह दमन,प्राण दमन,

मनोदमन इन्द्रिय दमन मत करो.

आत्म दमन करो.

मन का दमन ही त्रुटिपूर्ण शब्दाबली है.

मन का निर्मलीकरण ही ,

सही नियमावली है.

अवांछनीय तत्वों का निरसन ,

निर्मलीकरण और समुचित नियमन,

क्यों कि किसी भी त्याग में ,

मन का सहयोग अपरिहार्य है.

बिना सहयोग के त्याग दमन जैसा कार्य है.


अतः जो सर्वस्व सहज रूप में,

मन के सहयोग से त्याग करता है,

वही सर्व को अविकल भोग सकता है.

" जिनको कछु न चाहिए वे शाहन के शाह "

की प्रवृति से ही " तापसी प्रवज्या " को

ऊर्जा मिलती है.

संस्कार गलते जाते हैं.

अंततः स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा आरम्भ हो जाती है.