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ताबिन्दा रौशनी की ख़बर ले के आएगी / फ़रीद क़मर
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ताबिन्दा रौशनी की ख़बर ले के आएगी
हर शब् नई उमीदे-सहर ले के आएगी
भटका रही है आज अगर दर-ब-दर तो क्या
आवारगी कभी मुझे घर ले के आएगी
तन्हा तुम्हें भी चलना है इन रास्तों पे कल
कल ज़िन्दगी तुम्हें भी इधर ले के आएगी
कर के तवाफ़ शहर का लौटेगी जब हवा
चेहरे पे अपने वहशतो-डर ले के आएगी
तितली चमन से लाएगी सौगाते-रंग, या
बिखरे हुए कुछ अपने ही पर ले के आएगी