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तारा दर्शन / अज्ञेय
Kavita Kosh से
हम ने हाथ नहीं बढ़ाया : हम ने आँखों से चूम लिया।
खड़े ही रहे हम, थिर, हाँ, हमारे भीतर ही ब्रह्मांड घूम लिया।
'कितनी दूर होते हैं तारे', हम सोचते तो सोचते ही रह जाते-
'कब भला भाग्य जागेंगे हमारे?'
पर हम सोच कुछ सके नहीं, पल अपलक
खड़े रहे, उद्ग्रीव मानो चातक रह जाए ठिठक,
फिर, हाँ, स्वाती तो हमारी आँखों में ही उतर आया!
(खड़े रहे हम, थिर, हाँ, हम ने हाथ नहीं बढ़ाया।)
वसिष्ठ मुनि मनाली, जून, 1950