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तारों भरी रात / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

मुझे रात पसंद है
पर होनी चाहिए वो तारों भरी
बात सुनना चाहती हूँ पर
कहना भी चाहती हूँ खरी-खरी
आदमी-आदमी को चाहे
फिर रटे न रटे चाहे हरी-हरी
सब कहते हैं वह, खुश है
फिर उसकी आँखें क्यों रहती हैं भरी-भरी
वो हँसती है जीती है
पर भीतर से है मरी-मरी
दुनिया कैसे होगी खूबसूरत
रहती है इसमें एक लड़की डरी-डरी
पत्ते से लिपटकर बूँद रोई
मैं अब झरी कि तब झरी
मुझे धरती प्रिय है
उसे रखूँगी मैं हरी-भरी