भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तार झंकृत कर दिए सद्भावना के / शिवम खेरवार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तार झंकृत कर दिए सद्भावना के,
विषधरों! सन्मार्ग से हटना पड़ेगा।

सोचकर यह; अब तलक मैं चुप रहा था,
सत्य रेखा अनुसरित कर चल पड़ोगे।
त्याग कर विषदंश; गंगाजल उठाकर,
रीतियों की कुप्रथा से तुम लड़ोगे।

कालिया का विष बढ़ा जो घोर ज्वर सा,
हारकर तप से उसे! घटना पड़ेगा।

हम चले उन्मूलकों की राह जबसे,
कालिमा से आँकड़ा छत्तीस का है।
तुम समझ लो; इंगितों में कह रहे हैं,
पादुका आकार अपना तीस का है।

धर्म के साधक बनो; वरना तुम्हें अब,
पाठ बल से सत्य का रटना पड़ेगा।
विषधरों! सन्मार्ग से हटना पड़ेगा।

आजकल महँगा हुआ है फन उठाना,
है क्षणिक चेतावनी! तुम चेत जाओ.
तिथि नियत है काल के पञ्चाङ्ग में अब,
 'माह' घोषित छावनी! तुम चेत जाओ.

विष समूचा त्याग दो अंतिम समय है,
खड्ग से वरना तुम्हें कटना पड़ेगा।