भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताला खोलना / बेई दाओ
Kavita Kosh से
|
मैं स्वप्न देखता हूं कि मैं शराब पी रहा हूं
गिलास ख़ाली है
पार्क में कोई अख़बार पढ़ रहा है
इतने बुढ़ापे में कौन है जो उसे
क्षितिज की रोशनी को लील लेने को उकसाता है?
मुर्दों के नाइट स्कूल में लगी बत्तियां
ठंडी चाय में बदल जाती हैं
स्मृति की ढलान लुढ़कते-लुढ़कते
रात के आसमान तक पहुंच जाती हैं, तो आंसू कीचड़ बन जाते हैं
लोग झूठ बोलने लगते हैं - जब अर्थ का सबसे कठिन बिंदु आता है
वे फिसलकर जल्लाद का पक्ष ले लेते हैं
फिसलकर मेरी ओर आ जाओ : ख़ाली मकान
एक खिड़की खुलती है
जैसे सरगम का द्रुत ग चीरता है सन्नाटे को
पृथ्वी और दिशासूचक कंपास घूमते हैं
अपने गुप्त संयोग से-
पौ फटती है
अंग्रेजी भाषा से रूपांतरण : गीत चतुर्वेदी