तालिब था तू खुद-नुमाई का ग़र मुझ से
मेरे भी तो होने के, सबब कुछ होते
शायद हो जवाज़ तेरे होने का कुछ
मानी ही नहीं खुलते मिरे होने के।
तालिब था तू खुद-नुमाई का ग़र मुझ से
मेरे भी तो होने के, सबब कुछ होते
शायद हो जवाज़ तेरे होने का कुछ
मानी ही नहीं खुलते मिरे होने के।