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ता उम्र कुछ ऐसे हालात साथ रहे मेरे / तारा सिंह
Kavita Kosh से
ता उम्र कुछ ऐसे हालात साथ रहे मेरे
मैं तेरा न हो सका, तू न हुये मेरे
दर्दे-दिल पैदा हुआ, दर्दे जिगर जा रहा
तअस्सुफ़1 के सिवा और कुछ पास नहीं मेरे
अहले-आलम में हूँ, जिन्दों में मुरदों की
तरह, गुनाहों की गठरी बड़ी भारी है मेरे
जो समझता तेरे दिल की जलन को
पैमाना-ए-दिल खोलकर रख देता नहीं आगे तेरे
माना, मेरा दिल तेरा घर है, मगर यह
मकान आबाद तब होता, जो तू साथ होते मेरे