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ता मन ते मन मान / शब्द प्रकाश / धरनीदास
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मैं मनको कहि आउर वाउर छाउर केतिक वार पवारों।
जा मन को कहिया मुख लम्पट चोर कठोर धिकार विकारों॥
जा मनको गहि चोटिय रोटि कसौटि खसोटि कमान कटारो।
ता मन ते मन मान अवै, धरनी-जन जानत प्रानते प्यारो॥19॥