भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तितली और भौंरा / हरीश निगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तितली रानी,
बड़ी सयानी,
बोली-भौंरे सुन!

ओ अज्ञानी,
पड़ी पुरानी,
तेरी ये गुनगुन!

कालू राजा,
खा के खाजा,
छेड़ नई-सी धुन!