भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तितली और भौंरा / हरीश निगम
Kavita Kosh से
तितली रानी,
बड़ी सयानी,
बोली-भौंरे सुन!
ओ अज्ञानी,
पड़ी पुरानी,
तेरी ये गुनगुन!
कालू राजा,
खा के खाजा,
छेड़ नई-सी धुन!