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तितली / राग तेलंग
Kavita Kosh से
तितली
परदों वाले घर में रहती थी
हालांकि
कभी.कभार ही निकल पाती थी
घर से बाहर
और जब घर से बाहर निकलती थी देखते ही बनती थी
उसकी बाहें मचलने लगती थीं पंखों की तरह
हवा से बातें करने का हुनर
उमग उठता था भीतर उसके
सब देखते रह जाते थे उसे
वह किसी को तब नज़र भर देखती थी
जब कोई पुकारता था उसे
मन नही मन
ऐ ! तितली !!