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तिरी निगाह ने अपना बना के छोड़ दिया / 'शेवन' बिजनौरी

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तिरी निगाह ने अपना बना के छोड़ दिया
हँसा के पास बुलाया रूला के छोड़ दिया

हसीन जल्वों में गुम हो गई नज़र मेरी
ये क्या किया कि जो पर्दा उठा के छोड़ दिया

जुनूँ में अब मुझे अपनी ख़बर न ग़ैरों की
ये ग़म ने कौन सी मंज़िल पे ला के छोड़ दिया

जो मआरिफ़त के गुलाबी नशे से हो भर-पूर
वो जाम तू ने नज़र से पिला के छोड़ दिया

किसी ने आज ज़माने के ख़ौफ़ से ‘षेवन’
हमारा नाम भी होंठों पे ला के छोड़ दिया