भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तीन किस्म के जानवर / विनोद पाराशर
Kavita Kosh से
इस जंगल में
तीन किस्म के जानवर हॆं
पहले-
रॆंगते हॆं
दूसरे-
चलते हॆं
तीसरे-
दॊडते हॆं।
रॆंगने वाले-
चलना चाहते हॆं
चलने वाले-
दॊडना चाहते हॆं
लेकिन-
दॊडने वाले !
स्वयं नहीं जानते
कि वे
क्या चाहते हॆं?