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तुझमें बसते हैं मेरे प्राण / अनिल जनविजय

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(स्वेतलाना कुज़्मिना के लिए)

तुझको मैंने चाहा है
सम्पूर्ण हृदय से

तुझमें बसते हैं मेरे प्राण
गाता है जीवन सहज गान
किरण तरुणा रूप है तू
सुगंध है तू, धूप है तू
देह मन शीतल करे है
वसंत की मृदु छवि धरे है

तुझको मैंने पाया है
निज विमल हृदय से

तन कंपित, सप्तक का तार
मन झंकृत, सुख का विस्तार
तुझको पा उर फूल खिला
घोर तिमिर में रवि मिला
रजत हास करे मेरा मन
तेरे जादू से बदला जीवन

मैं मुदित हूँ, प्रिया रक्तांगी
तेरी इस विजय से

(2003)