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तुझमें है तासीर मोहब्बत की भीतर तक - शायर ग़ालिब-मीर तुम्हारी आँखों मे है / रवीन्द्र प्रभात

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ख़्वाबों की ताबीर तुम्हारी आँखों में है,
शोख़ जवाँ कश्मीर तुम्हारी आँखों में है।

तुझमें है ताबीर मोहब्बत की भीतर तक,
शायर गालिब-मीर तुम्हारी आँखों में है।

सुबहे काशी का मंजर ओ' शाम अवध का,
क्या सुन्दर तस्वीर तुम्हारी आँखों में है।

छलकाए अंगूरी नेह लुटाए हौले से,
राँझा की ओ हीर तुम्हारी आंखों में है।

ताजमहल का अक्स नक्श एलोरा का,
प्यार की हर जागीर तुम्हारी आँखों में है।
 
भरी उमस में पिघल-पिघल के बरसे जो,
हिमाचल की पीर तुम्हारी आँखों में है।

बूँद-बूँद को तरस उठे जो देखे बरबस,
राजस्थानी नीर तुम्हारी आँखों में है।

गोरी गुज़रती गुड़िया शर्मीली-सी,
सागर-सी गम्भीर तुम्हारी आँखों में है।

चाँद सलोना देख-देख के सागर झूमे,
गोया की तासीर तुम्हारी आँखों में है।

कान्हा नाचे रस रचाए छलकाए,
रोली-रंग-अबीर तुम्हारी आँखों में है।

तिरुपती की पावन मूरत सूरत-सी,
दक्षिण की प्राचीर तुम्हारी आँखों में है।

तमिल की ख़ुशबू कन्नड़-तेलगू की चेरी,
झाँक रही तदबीर तुम्हारी आँखों में।

खजुराहो की मूरत जैसी रची-बसी हो,
छवि सुन्दर-गम्भीर तुम्हारी आँखों में।

गीत बिहारी गए, बजे संगीत रवीन्द्र,
भारत की तकदीर तुम्हारी आँखों में है।