भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझ बिना दिल को बे-क़रारी है / फ़ाएज़ देहलवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझ बिना दिल को बे-क़रारी है
दम-ब-दम मुझ को आह-ओ-ज़ारी है

हाथ तेरे जो देखी है तल्वार
आरज़ू दिल को जाँ-सिपारी है

मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम
तुझ से हर दम उम्मीद-वारी है

हम से तुझ को नहीं मिलाप कभी
ये मगर जग में तौर-ए-यारी है

आह कूँ दिल में मैं छुपाता हूँ
लाज़िम-ए-इश्क़ पर्दा-दारी है

गिर रहा तेरी राह पर ‘फ़ाएज़’
इश्क़ की शर्त ख़ाकसारी है