भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुझ बिन ब-चमन हर-ख़सो-हर-ख़ार परीशाँ / सौदा
Kavita Kosh से
तुझ बिन ब-चमन हर-ख़सो-हर-ख़ार परीशाँ
हैरान है नरगिस, गुलो-गुलज़ार परीशाँ
गह कुफ़्र का माइल है ये दिल, गह सुए-इस्लाम
है दर-तलब सुबह-ओ-ज़ुन्नार परीशाँ
मैं हाले-दिल इस वास्ते करता नहीं इज़हार
ता ग़म न करे ख़ातिरे-ग़मख़्वार परीशाँ
अख़्तर न समझियो, ये मिरी आहे-शररबार
होती है फ़लक पर ब-शबे-तार परीशाँ
उस जिंस का इन्साँ है तू प्यारे कि तुझे देख
युसुफ़ की हो जमैयते-बाज़ार परीशाँ
सुंबुल से सबा किसकी आई ब-क़फ़स बू
है ज़मज़म-ए-मुर्गे-गिरफ़्तार परीशाँ
दी नाज़ ने रुख़सत न टुक इधर जो वो देखे
उस पर कि सदा है नज़र-ए-यार परीशाँ