भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझ मुख उपर हे रंग-ए-शराब-ए-अयाग़-ए-गुल / वली दक्कनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझ मुख उपर हे रंग-ए-शराब-ए-अयाग़-ए-गुल
तेरी ज़ुलफ़ है हल्‍क़ए-दूद-ए-चिराग़-ए-गुल

माशूक़ कूँ ज़हर नहीं आशिक़ की आह सूँ
बुझता नहीं है बाद-ए-सबा सूँ चिराग़-ए-गुल

रहता है दिल पिया के तफ़ह्हुस में रात-दिन
है कार-ए-अंदलीब हमेशा सुराग़-ए-गुल

आशिक़ मुदाम हाल-ए-परीशाँ सूँ शाद है
आशुफ़्तगी के बीच है दायम फ़राग़-ए-गुल

तुझ दाग़ सूँ हुआ है चमनज़ार दिल मिरा
ऐ शोख़ आके देख तमाशा-ए-बा-ए-गुल

चलते हैं पी के शौक़ सूँ उश्‍शाक़ रात दिन
है दिल में बुलबुलाँ के शब-ओ-रोज़ दाग़-ए-दिल

यूँ तुझ सजन में नश्‍शा-ए-मा'नी है ऐ 'वली'
ज्‍यूँ रंग-ओ-बू की मै सूँ है लबरेज़ अयाग़-ए-‍दिल