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तुझ से क्या रिश्ता—ए—वफ़ा टूटा / सुरेश चन्द्र शौक़
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तुझ से क्या रिश्ता—ए—वफ़ा टूटा
दिल की दुनिया पे क़हर—सा टूटा
आए दिन इक नई दिल आज़ारी
इक सितम हम पे नित नया टूटा
ढह गए रेत के महल सारे
जब ख़्यालों का सिलसिला टूटा
तेरी यादें भी पड़ गईं धुँदली
तेरे ग़म का भी आसरा टूटा
रह गई बात अब दिखावे की
दिल से दिल का वो राबिता टूटा
इससे पहले कि हम हों नग़्मा—सरा
‘शौक़’, हर तार साज़ का टूटा.
दिल—आज़ारी= दिल की पीड़ा; राबिता=नातेदारी;नग़्मासरा=मधुर स्वर में गाना