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तुम! / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
दोष तुम्हारा नहीं-हमारा है
जो हमने तुम्हें इंद्रासन दिया;
देश का शासन दिया;
तुम्हारे यश के प्रार्थी हुए हम;
तुम्हारी कृपा के शरणार्थी हुए हम;
और असमर्थ हैं हम
कि उतार दें तुम्हें
इंद्रासन से-देश के शासन से,
अब जब तुम व्यर्थ हो चुके हो-
अपना यश खो चुके हो!
रचनाकाल: १६-११-१९५९