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तुमने प्रेम कहा और डूब गई / वंदना मिश्रा

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तुमने प्रेम कहा और डूब गई
मैं प्रेम में,
जानती हूँ
असम्भव था
मिलना हमारा।
जिस पौधे को रोपा था हमने
सोच कर कि सुगन्धित पुष्प देगा,
मुरझा गया,
मैंने लाख जतन किये,
बचा न सकी।
दुःख उसके मुरझाने का है,
पर ज़्यादा यह कि
तुम्हें इसका
कोई दुःख नहीं था।