तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने
हमको मालूम है कहाँ कितने
बागबानो से पूछते रहिए
और जलने है गुलिस्ताँ कितने
तेरे दिल पर हसीन यादों के
छोड़ जाऊँगा मैं निशां कितने
ए परिंदे उड़ान भर के देख
तेरे आगे हैं आस्मां कितने
ऐसे पल जिनमें तेरा साथ न था
मुझ पे गिरे हैं वो गिरां<ref>भारी</ref> कितने
एक ताबिर के न होने से
हो गये ख्वाब रायगां<ref>बेकार</ref> कितने
ये ज़माने पे खुल न जाए कहीं
राज़ है अपने दरमियाँ कितने
ढूँढ़ने से कहीं खुशी न मिली
गम मिले है यहाँ वहाँ कितने
ज़िंदगी में कदम कदम पे ज़हीन
देने पड़ते हैं इम्तिहां कितने
शब्दार्थ
<references/>