भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुममें मैं / मनीष मूंदड़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं कितना हूँ तुममें
यह तुम्हारी ख़ामोशी सुनाती है मुझे

मैं कितना हूँ तुममें
यह तुम्हारी जि़द समझाती है मुझे

मैं कितना हूँ तुममें
तुम्हारे ये सपने दिखाते हैं मुझे

मैं कितना हूँ तुममें
तुम्हारी लिखी हर बात में दिख पड़ता हूँ मैं

मैं कितना हूँ तुममें
तुम्हारी आँखों की नमी मेरे मन पर महसूस होती है

मैं कितना हूँ तुममें
शायद जितने तुम हो मुझमें
या फिर उससे भी कहीं ज्यादा