भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमसे नहीं / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे
तुमसे नहीं
समाज से शिकायत है
जिसने तुम्हें मेरा अर्द्धांग बनाया
और अब
तुम्हें मुझसे चीर रहा है
आरे से,
बदहवास भीड़ में
डुगडुगी बजाकर
सबके सामने मौत का तमाशा दिखाकर
कि हमें टिकटियों में बाँधकर
दिन दहाड़े भस्मसात करे
और खुद जिए, भीख माँगे
तब तक जब तक सब न मरें।

रचनाकाल: ०६-११-१९६७